हैल्लो दोस्तों आज हम आपको बताएंगे कि वायुमंडल में इतना ऑक्सीजन होने के बाद भी हमे ऑक्सीजन सिलेंडर की आवश्यकता क्यों पड़ती है। तो चलिए शुरू करते है, दोस्तों हम सभी जानते है की वायुमण्डल में 78% नाइट्रोजन गैस है जिसका हमारे श्वासन में कोई काम नहीं है 21% ऑक्सीजन है, हम जितना सांस लेते है उसमे से ऑक्सीजन 21% साँस में जाता है और 1% दूसरी गैस है इस 21% ऑक्सीजन में से हमारा फेफड़े को नाइट्रोजन अलग करना पड़ता है और बाकि सब गैसो को अलग करना पड़ता है,
लेकिन जब हमारा फेफड़ा ख़राब हो जाता है या अच्छे से काम नहीं करता है, बिमारियो के वजह से तो वह इन सारी क्रिया को नहीं कर पाता है इस लिए हमे चाहिए होता है।टोटल शुद्ध ऑक्सीजन और उस ऑक्सीजन को उसे छाटना न पड़े हलाकि फेफड़े टोटल दिए गए ऑक्सीजन का केवल 4% ऑक्सीजन ही लेते है मतलब जो 21% ऑक्सीजन लिया जाता है उसका सिर्फ 4% ही प्रयोग हो पाता है लेकिन यहाँ पर फेफड़ो को ज्यादा काम करना पड़ता है। सबसे पहले ऑक्सीजन और दूसरी गैस को अलग करो फिर उसमे से 4% ऑक्सीजन निकालो इसलिए मरीज़ को सीधे दिया जाता है 99% शुद्ध ऑक्सीजन जिसमे से उसका शरीर 4% के आस पास ऑक्सीजन का प्रयोग कर लेता है दोस्तों ऑक्सीजन सिलेंडर भी कई प्रकार के होते है।जैसे कोई पर्वत पर या समुन्द्र में है, तो उसको ऑक्सीजन के साथ नाइट्रोजन भी दी जाती है अगर कोई वेंटिलेटर पर है, तो उसको ऑक्सीजन के साथ हीलियम गैस भी दी जाती है क्यूंकि जब कोई वेंटिलेटर पर रहता है, तो उसका फेफड़ा बहुत ज्यादा ख़राब रहता है, इसलिए शुद्ध ऑक्सीजन उसको बहुत भारी लगता है जिससे परेशानी और बढ़ सकती है। इसलिए उसमे हीलियम गैस मिलाकर उसको थोड़ा हल्का कर लेते है। दोस्तों हमने यहाँ आपको बताया कि वायुमंडल में इतनी ऑक्सीजन होने के बाद भी हमे ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत क्यों पड़ती है। इसी तरह इस ब्लॉग पर मैं रोज़ दैनिक जीवन में विज्ञान( Daily Life Science) से सम्बंधित जानकारी देता हु, इस ब्लॉग पर रोज़ आपको कुछ नया जानने को मिलेगा। दोस्तों अगर आपको कोई सवाल पूछना है, तो नीचे कमेंट्स में पूछ सकते है।
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